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LECTURE : भारतीय सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के आयाम & प्री. पीएच.डी कोर्सवर्क प्रमाण-पत्र वितरण (30 September 2024)

 


विश्वविद्यालय इतिहास विभाग में प्री. पीएच.डी कोर्सवर्क प्रतिभागियों के बीच प्रमाण-पत्र का वितरण समारोह और एक व्याख्यानमाला का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के अध्यक्ष माननीय कुलपति प्रो. दिनेश चंद्र राय ने प्री. पीएच.डी. कोर्स वर्क - 2021 के सफल प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र प्रदान किया।उन्होंने सभी शोधार्थीयों को पुस्तकालय जाकर पढ़ने की आदत डालने और मौलिक शोध करने पर जोर दिया। साथ हीं उन्होंने सभी छात्रों को अपने गुरु के प्रति समर्पण की भावना रखने की बात कही एवं सभी प्रतिभागियों को उनके समर्पण और मेहनत के लिए बधाई दी और भविष्य में और अधिक सफलता की कामना की। 


इस अवसर पर उपस्थित विश्वविद्यालय के कुलानुशासक प्रो. विनय शंकर राय ने भी सभी शोधार्थीयों का मार्गदर्शन किया और उन्हें पीएचडी से संबंधित सिनॉप्सिस, आर्टिकल एवं थीसिस खुद से लिखने की सलाह दी और कहा की आप सभी शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ें और अपने विश्वविद्यालय का नाम रौशन करें।


इसके बाद विभाग में डॉ. एच. आर. घोषाल व्याख्यानमाला के अंतर्गत दो महत्वपूर्ण व्याख्यान आयोजित किए गए। 


जिसमे पहले व्याख्यान का विषय "भारतीय सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के आयाम" था, जिसके मुख्य वक्ता डॉ. धर्मेंद्र कुमर ने भारतीय संस्कृति की जड़ों और उसकी वर्तमान प्रासंगिकता पर विचार किया। उन्होंने कहा कि सांस्कृतिक राष्ट्रवाद केवल एक विचारधारा नहीं है, बल्कि यह एक ऐसा आंदोलन है जो भारतीय विविधता को एकता में पिरोता है। डॉ. कुमार ने सांस्कृतिक पहचान के संदर्भ में ऐतिहासिक घटनाओं का भी उल्लेख किया। जिससे यह स्पष्ट हुआ कि कैसे भारतीय संस्कृति ने विभिन्न चुनौतियों का सामना किया है और समय के साथ विकसित हुई है। 


व्याख्यान के कुछ प्रमुख बिंदु निम्नलिखित हैं


वैदिक सभ्यता से सांस्कृतिक विकास शुरू हुआ

समानता के कारण जगी चेतना को हीं राष्ट्रवाद कहते हैं 

भारतीय संस्कृति संस्थागत नहीं है

भारत की संस्कृति की विशालता के कारण हीं बाह्य आक्रमणकारियों ने भी हमारी संस्कृति को अपनाया  

मध्यकाल में एक समुदाय के आगमन से हमारी प्राचीन संस्कृति खतरे में पड़ गई 

अंग्रेजों के आगमन ने भी भारतीय संस्कृति पर कुठाराघात किया। 

उपनिवेश के क्रम में भारतीय सांस्कृतिक दोहन हुआ 

भारतीय राष्ट्रवाद के पुरोधा बाल गंगाधर तिलक थे

संस्कृति हमें आगे बढ़ने की चेतना देती है और हमें इस पर गर्व है। 


वहीँ दूसरे व्याख्यान का विषय "आधुनिक बिहार के इतिहास लेखन की समीक्षा: तथ्य की भूल के संदर्भ में" था, जिसमें डॉ. राजू रंजन प्रसाद ने बिहार के इतिहास लेखन में तथ्यों की प्रस्तुति पर प्रकाश डाला। उन्होंने तर्क किया कि कई बार इतिहासकार तथ्यों को अपने पूर्वाग्रहों के अनुसार प्रस्तुत करते हैं, जिससे वास्तविकता को समझने में बाधा उत्पन्न होती है। डॉ. प्रसाद ने उदाहरणों के माध्यम से बताया कि कैसे इतिहास लेखन में सत्यता का अभाव कई सामाजिक और राजनीतिक समस्याओं को जन्म देता है। 


व्याख्यान के कुछ प्रमुख बिंदु निम्नलिखित हैं 


बिहार के इतिहास लेखन में तथ्य को अनदेखा किया गया एवं गलत तथ्य भी दिया गया है 

सोशल मीडिया पर भी गलत एवं भ्रामक तथ्यों की भरमार है 

अयोध्या सिंह उपाध्याय के पुस्तक में प्रिंटिंग प्रेस की चर्चा है लेकिन बिहार बंधु प्रेस, बिहार बंधु पत्र आदि की चर्चा नहीं है

साथ हीं बिहार बंधु पत्र के प्रकाशित होने की तिथि भी गलत है  


धन्यवाद ज्ञापन करते हुए विश्वविद्यालय इतिहास विभागाध्यक्षा प्रो. रेणु कुमारी ने कहा कि यह व्याख्यान शोध एवं अकादमिक उत्कृष्टता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था। उन्होंने कुलपति, कुलानुशासक और दोनों वक्ताओं का आभार जताया और आगे भी ऐसे शैक्षणिक गतिविधियों निरंतर जारी रहने की बात दोहराई।


इस अवसर पर इतिहास विभाग के प्रो. पंकज कुमार राय, डॉ. सत्य प्रकाश राय, डॉ. गौतम चंद्रा, डॉ. अर्चना पाण्डेय, डॉ. अमानुल्लाह, शोधार्थी हिमांशु, मणिरंजन, अनुराग, अन्नु सहित सैंकड़ों शोधार्थी और विद्यार्थी उपस्थित रहें।

DAINIK JAGRAN (01-10-2024), MUZ

PRABHAT KHABAR (01-10-2024), MUZ










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