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SEMINAR : तिरहुत की सांस्कृतिक विरासत तथा विरासत के संरक्षण में संग्रहालय की भूमिका (13 January 2025)

 


बिहार सरकार कला, संस्कृति एवं युवा विभाग संग्रहालय निदेशालय के अंतर्गत, रामचंद्र शाही संग्रहालय, मुजफ्फरपुर में एक दिवसीय शैक्षणिक संगोष्ठी का आयोजन दिनांक - 13.01.2025, सोमवार को 'तिरहुत की सांस्कृतिक विरासत' तथा 'विरासत के संरक्षण में संग्रहालय की भूमिका' विषय पर एक दिवसीय शैक्षणिक संगोष्ठी का आयोजन किया गया।



कार्यक्रम के मुख्य वक्ता विश्वविद्यालय इतिहास विभाग के प्राध्यापक शिवेश कुमार ने शैक्षणिक संगोष्ठी के शीर्षक विषय पर अपने विचार रखते हुए कहा कि अतीत के अमूल्य निधियां के संग्रहण का केंद्र संग्रहालय है। जो अपने पुरातात्विक माध्यम से महत्वपूर्ण अवशेषों तथा वस्तुओं को संग्रहित कर ऐसा जीवंत परिदृश्य प्रस्तुत करता है जिससे हम अपने अतीत और इतिहास के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं। इतिहास को उन्होंने 5वाँ वेद बताया। 



वही संस्कृति के बारे में कहा कि संस्कृति कला के माध्यम से प्रदर्शित होती है। संस्कृति के मुख्यतः दो प्रारूप मूर्त (जो साक्षात दिखाई दे, जैसे परिधान और भाषा आदि) और अमूर्त (जो दिखे नहीं लेकिन महसूस हो, जैसे - त्योहार, परंपरा लोक गाथा आदि) हैं। लेकिन वर्तमान में इसमें एक और प्रारूप प्राकृतिक (प्राकृतिक सौंदर्य पहाड़ समुद्र पेड़ पौधे बर्फ आदि) जुड़ गया है। 


इसके अलावा उन्होंने तिरहुत के सांस्कृतिक विरासत के बारे में भी विस्तार से चर्चा किया और बताया कि तिरहुत का संबंध प्राक कालीन इतिहास के समय से है। शतपथ ब्राह्मण में गंडक नदी, गंगा नदी और सरस्वती नदी का वर्णन है जो तिरहुत से संबंधित है। 


तिरहुत प्रमंडल के नामाकरण की पृष्ठभूमि ऐतिहासिक है। इस प्रमंडल का 'तिरहुत' नाम तत्कालीन भारत सरकार के गृह सचिव (मि. रिग्ले) के प्रस्ताव पर रखा गया। 'तिरहुत' शब्द 'तीर भुक्ति' शब्द से व्युत्पन्न है। यह शब्द, वस्तुतः, 'तीर भुक्ति' शब्द का कालक्रमेण उच्चारित रूपान्तरण है। 'तीर' का अर्थ होता है तट (किनारा) और 'भुक्ति' का अर्थ (तत्कालीन प्रशासनिक शब्दावली के अनुसार) है प्रदेश । इस प्रकार, 'तीर भुक्ति' शब्द से तात्पर्य है उस प्रादेशिक भू-भाग का जो नदियों के तीरों (तटों) पर स्थित हो । जनरल कनिंघम ने गंडक और बागमती नदियों के तटवर्ती भू-भाग को तिरहुत-क्षेत्र कहा है। तत्कालीन तिरहुत क्षेत्र में चम्पारण, मुजफ्फरपुर तथा दरभंगा जिले के भू-भाग के साथ-साथ नेपाल के तराई क्षेत्र भी सम्मिलित थे। आगे चलकर प्रशासनिक सुविधा के दृष्टिकोण से वर्ष 1973 में दरभंगा, मधुबनी एवं समस्तीपुर जिलों को मिलाकर दरभंगा प्रमंडल तथा वर्ष 1981 में छपरा, सीवान एवं गोपालगंज जिलों को मिलाकर सारण प्रमंडल का सृजन कर इसे पृथक किया गया।

PRABHAT KHABAR (14-01-2025), MUZ

अन्य अतिथियों में सेवानिवृत्त भारतीय पुरातत्वविद डॉ. डी. एन. सिन्हा ने कहा कि संग्रहालय का इतिहास 2600 साल पुराना है। उन्होंने कहा कि पुरातत्व विधि सभी जगह से साक्ष्य, अवशेष और पुरानी चीजों को संग्रहित कर इतिहास बनाते हैं। उत्तर वैदिक काल से लेकर वर्तमान समय तक मुजफ्फरपुर एक सांस्कृतिक केंद्र रहा है और उसमें रामचंद्र संग्रहालय अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। अंत में उन्होंने कहा कि संग्रहालय की समृद्धता तभी है जब वह अपने संरक्षित अवशेषों और वस्तुओं को छात्रों के बीच साझा करें। 

वहीं वरिष्ठ साहित्यकार संजय पंकज ने साहित्य के माध्यम से प्राचीन तिरहुत की सांस्कृतिक विरासत को सामने रखा। उन्होंने कहा कि तिरहुत एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक केंद्र है जहां हमारा बहुमूल्य विरासत संरक्षित है। 

DAINIK BHASKAR (14-01-2025), MUZ

इस कार्यक्रम का धन्यवाद ज्ञापन करते हुए रामचंद्र शाही संग्रहालय के सहायक संग्रहालयाध्यक्ष विमल तिवारी ने कहा कि एशियाटिक सोसायटी ऑफ बंगाल के से प्रेरित होकर 1784 ईस्वी में इंपीरियल म्यूजियम ऑफ बंगाल की स्थापना हुई थी। जो आज राष्ट्रीय संग्रहालय के नाम से जाना जाता है। जो एशिया का सबसे बड़ा और दुनिया का नौवां सबसे बड़ा संग्रहालय है। 

इस अवसर पर एमडीडीएम कॉलेज की इतिहास विभाग की सहायक प्राध्यापिका डॉ. प्रांजलि, शोधार्थी हिमांशु, कुंदन, अन्नू, मणिरंजन और अनुराग सहित सैकड़ों छात्र और छात्राएं मौजूद रहे।

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